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बाबा साहब अम्बेडकर की दृष्टी में मनुवाद (भाग 2)

जनेयू के विद्यार्थियों ने अनेक तरह के विवादास्पद नारे 9 फरवरी 2016 को एक आतंकवाद और आतंकवादी को महिमामंडित करते हुए लगाए। पर जब उन पर पुलिस की कार्यवाही हुई और पूरे देश में उनकी थू थू हुई तो वे बाबा साहब के उपर्युक्त लेख की शरण में जा लेटे। उन्होंने मनुवाद और संघवाद से आजादी की बात करना शुरू किया।

वे ये भूल गये कि डा.अम्बेडकर ने संविधान सभा में 17 दिसंबर 1946 में बोलते हुए कहा था “आज हमारा देश कई लड़ाकू दलों में बँट गया है, और मैं तो यहाँ तक मंजूर करूँगा कि ऐसे ही एक लड़ाकू दल के नेताओं में शायद मैं भी एक हूँ।परन्तु सभापति महोदय इन सब बातों के बावजूद भी मुझे इस बात का पक्का विश्वास है की समय और परिस्थिति अनुकूल होने पर दुनिया की कोई भी ताकत इस मुल्क को एक होने से रोक नहीं सकती।जाति और धर्म की भिन्नता के बावजूद भी हम किसी न किसी रूप में एक होंगे,इसमें मुझे जरा भी शक नहीं है।”

संविधान सभा में 21 जनवरी 1947 को बोलते हुए श्री आर. वी.धुलेकर ने कहा कि “समाज के किसी अंग को अछूत बना देना और उनके मानवाधिकार छीन लेना कदापि क्षम्य नहीं है”

इसमें संदेह नहीं कि अछूतों को घोर अपमान और कष्टों को झेलना पड़ा। लेकिन इस घृणास्पद और अमानवीय परम्परा के विरोध में देश में कोने कोने से आवाज उठी।

श्री एच.जे. खांडेकर ने 21जनवरी 1947 में संविधान सभा को याद दिलाया “हरिजनों के ऊपर आज तक अनंत अत्याचार और जुल्म हुए हैं और हो रहे हैं।मगर हमने बड़े धैर्य के साथ उन जुल्मों को सह लियाऔर यहाँ तक कि हमने कभी भी अपने धैर्य को छोड़ने की नहीं सोची।हम हिंदू हैं ,हम हिंदू ही रहेंगे और हिंन्दू रहते हुए ही अपने हक़ सम्पादन करेंगे,हम यह कभी नहीं कहेंगे कि हम हिन्दू नहीं हैं”।हम जरूर हिन्दू हैं और हिन्दू रहते हुए और हिंदुओं के साथ लड़कर अपने अधिकार प्राप्त करेंगे।”

हिन्दू होने के कारण हरिजनों पर मुसलामानों ने कैसे बर्बर अत्याचार किये ये याद दिलाते हुए उन्होंने कहा”हमें मालूम है नोआखाली के अंदर और ईस्ट बंगाल के अन्दर जो अत्याचार हुए हैं,उन अत्याचारों में 90 फी सदी हरिजनों पर जुल्म हुए। उनके मकान जलाए गए,उनके बाल बच्चे तबाह कर दिए गए,उनकी स्त्रियों पर, लड़कों पर अत्याचार किए गए। और इतना ही नहीं कई हजार हरिजनों को धर्मान्तर करना पड़ा”

गाँधी और कांग्रेस नहीं देना चाहते अछूतों को राजनैतिक संरक्षण

बाबा साहब के अनुसार गाँधी अपनी अछूतों के मसीहां की इमेज को स्वराज के चैम्पियन की छवि से अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। राउंड टेबल कांफ्रेंस के दौरान गांधी ने स्वयं को अछूतों का अग्रदूत बता डाला। अपने इस चैम्पियन के रोल को गांधी किसी के साथ साझा करने को तैयार नहीं। जब गांधी के इस दावे को ज़रा चुनौती  दी तो उन्होंने तमाशा बना डाला।

हाँ अपने अलावा वो काँग्रेस को भी अछूतों का चैम्पियन साबित करने पर तुल गए हैं।गांधी के अनुसार एक कांग्रेस ही तो है जिसने अछूतों के साथ हुई हर बुराई को ठीक कर देने की कसम खाई है। गांधी का तर्क ये है कि अछूतों के हितों को राजनैतिक रूप से रक्षा करने का प्रयास अनुचित और नुकसान दायक है। कांग्रेस की नीति और नियत पर बाबा साहब ने न  स्वतंत्रता से पहले भरोसा किया, न संविधान बनने के बाद। जब 1917 के अधिवेशन में कांग्रेस ने अछूतों पर लगी परंपरागत बंदिशों को ख़त्म करने की बात कही तो उन्होंने इसे सिरे से खारिज कर दिया।

उनके अनुसार एनी बेसेंट, जिन्होंने अधिवेशन की अध्यक्षता करी, वे तो खुले आम अछूतों के उत्पीड़न को समाज हित के लिए आवश्यक मानती रहीं, वो कब से अछूतों की हितैषी हो गयीं? साथ ही 1886 से कांग्रेस हर अधिवेशन में समाज सुधार के पचड़े में पड़ने से बचती रही। पर 1917 का प्रस्ताव मात्र राजनैतिक स्वार्थ से प्रेरित था, तथा जिसका एकमात्र उद्देश्य बेईमानी भरे रास्ते से अछूतों का समर्थन हासिल करना मात्र भर था।

“…हम हिंदू हैं ,हम हिंदू ही रहेंगे…”

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