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बाबा साहब अम्बेडकर की दृष्टी में मनुवाद (भाग 3)

“हिन्दु धर्म के दर्शन पर विचार”

डा. अम्बेडकर ने हिन्दू धर्म पर सारा विचार वर्ण व्यवस्था को धर्म का केन्द्र बिन्दु मान कर रखा।

उनके अनुसार एक हिन्दू दूसरे हिन्दू के साथ कुछ बाँट नहीं सकता । न जीवन काल में, न मृत्यू के बाद । एकता और भाईचारे की भावना से हिन्दू अपरिचित हैं। हिन्दुत्व वह सिद्घान्त है जो दो मनुष्यों की समानता को धार्मिक रूप से नकारता है।

हिन्दू के जीवन का हर क्षण धर्म से नियमित है। वो कैसे जिये, मरे तो कैसे जलाएँ। जब बच्चा पैदा हो तो कौन सा कर्म काण्ड़ किया जाय। उसका नामकरण, मुंडन, उसका पेशा, उसका विवाह, उसका खाना, क्या खाना, और क्या नहीं खाना, कितनी बार खाना, कितनी बार संध्या पूजा करना । दिन कैसे व्यतीत करना।

ये कुछ अजीब सी बात है कि कुछ शिक्षित हिन्दु ये मानते हैं कि इन सब बातों से कुछ अन्तर नहीं पडता।

परंतु वे ये भूल जाते हैं कि धर्म सामाज की सबसे बड़ी ताकत है। धर्म परमात्मा सत्ता  का अनुशासन है। उसकी व्यवस्था सामाज के आदर्शों को निर्धारित कर देती है। वो व्यवस्था दिखाई नहीं देते हुए भी हर रोज का जीता जागता सच है। जो धर्म को नकारते हैं, वो ये भूल कर बैठते हैं कि धर्मसत्ता कितनी प्रभावी और शक्तिशाली होती है। धर्म के आदर्श के रूप में स्थापित व्यवस्था के प्रभाव और शक्ति का मुकाबला मानवकृत कोई व्यवस्था कर ही नहीं सकती।

अछूत, अपमान और जनेयू

वर्ण व्यवस्था के घार्मिक आधार व हिन्दुओं में अछूतों के प्रति भ्रातृत्व के अभाव ने भयावह अपमान उत्पन्न किया। संवैधानिक और कानूनी प्रावघान भी परम्परागत रूप से सामाज में व्याप्त जाति के संस्कार को दूर नहीं कर पाए।

वामपंथी विचार इस अपमान का गहराई से अध्ययन करने लगे।

 2009 में अॉक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी प्रेस ने “ह्यूमिलिएशन” शीर्षक से अपमान के सिद्धांत का अध्ययन प्रकाशित किया।

राष्ट्रवादी मान्यता ने स्त्री एवं अछूत माने जाने वाली जातियों के स्वाभिमान पर चोट कर रही मान्यताओं को अनदेखा किया। यह विश्वास इस अध्ययन के केन्द्र बिन्दू में था।

वैलेरियन रोड्रिक्स के अनुसार भारत से यह अपेक्षा की जाती थी कि वह सांस्कृतिक रूप से गुलामी के समय की अपमानजनक व्यवस्था से अपने हर नागरिक को मुक्त करा सकेगा। रोड्रिक्स के अनुसार भारतीय संविधान की सबसे बड़ी चुनौती अछूतों को सार्वजनिक जीवन में हिस्सा देने की धी। रोड्रिक्स के अनुसार अछूत आज भी भारतीय समाज के हिस्से की तरह नहीं माने जाते।

भारतीय सामाज आज भी छूत अछूत, शुद्धि अशुद्धि के आदर्श से मुक्त नहीं हो पाया। ब्राह्मणवाद के पूर्वाग्रह ने अछूतों को अपमान से मुक्त नहीं होने दिया।

जनेयू के अध्यापकों तथा विद्यार्थियों का एक वर्ग राष्ट्रवाद को सामाजिक जीवन में हर दिन हो रहे अछूतों के अपमान की कसौटी में परख कर निरस्त करना चाहता है।

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