


हिन्दू साहित्य में वेद-पुराणों को भारत का प्रमाणिक इतिहास का दर्जा प्राप्त है। कोई भी देश या कोई भी इतिहास पर शोध करने वाली संस्था इन वेदों-पुराणों को अप्रमाणिक मानती हो लेकिन भारत का हर आदमी वेदों और पुराणों को ही देश का इतिहास समझता है। यह वेद पुराण आर्यों, देवताओ, अनार्यों, राक्षसों या सुर-असुरों के युद्धों के भरे पड़े है। हजारों युद्धों का वर्णन इन वेदों पुराणों में किया गया है। देश का युवा, बुजुर्ग या बच्चे सभी इन वेदों-पुराणों को ही देश का इतिहास मानते है, और वेदों पुराणों में लोगों को अथाह आस्था भी है। लेकिन आज तक किसी ने यहाँ नहीं सोचा कि जब आर्य भारत में आये और यहाँ आर्यों का युद्ध देत्यों से हुए जिनको समयानुसार बहुत सी जगह दैत्य, राक्षस, दानव और राक्षस लिखा गया। वो आखिर थे कौन? आज की युग में शुद्र और दलित कहलाने वाली जातियों का पूर्वज कौन था? ये एक अलग शोध का बिषय बना हुआ है। वैसे ये बात तो प्रमाणित है कि आर्य जाति कोई देवता नहीं थी। आर्य तो यूरेशिया से भारत में आये हुए लोगों को

कहते थे। यह बात 2001 में माइकल बामशाद नाम के शोधकर्ता ने भी भारत की सभी जातियों के DNA TEST से भी साबित की थी। जिस में पाया गया था कि ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य जाति के लोगों का DNA कमश: 99.99%, 99.88% और 99.86% काला सागर के पास स्थित मोरू नाम के प्रदेश के लोगों के DNA से मिलाता है। दूसरा प्रमाण; ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों की भाषा संस्कृत थी, जिसके हजारों शब्द रूस की भाषा से मिलते है। तो इस बात से भी पता चलता है कि ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य यूरेशियन है। यूरेशियन लोग हजारों मीलों का समुद्री सफर कर के भारत में आये थे। तो हो सकता है कि पृथ्वी पानी में स्थापित है यह कल्पना की गई हो। आज भले ही विज्ञान इस बात को सिरे से ही नकार देता हो। परन्तु उस समय लोग इस बात प्र विश्वास कर सकते थे। क्योकि लोगों को उस समय कुछ भी पता ही नहीं था। विज्ञान नाम की कोई भी चीज या विज्ञान नाम का कोई भी शास्त्र इन दुनिया में नहीं था। यूरेशियन जब भारत में आये तो वो लोग दक्षिण भारत के स्थानों पर पहुंचे होंगे। यह तो सब को पता ही है कि दक्षिण भारत में कितना बड़ा समुन्द्र है। दक्षिण भारत में 3 महासागर मिलते है, जिसे देख
कर तो वैसे भी युरेशियनों के छक्के छुट गए होंगे। पता नहीं कितने दिनों के भूखे प्यासे युरेशियनों को धरती दिखाती दी होगी। उस समय आर्यों का ज्ञान पहले ही बहुत कम था। तो उन्होंने यह परिकल्पना की होगी। हम यूरेशिया से यहाँ आये बिच में इतना बड़ा समुद्र पार किया, तो युरेशियनों ने खुद को स्वर्गवासी समझा होगा और भारत उनको समुद्र में मिला तो कल्पना अनुसार लिख दिया कि धरती अर्थात भारत पानी मैं स्थित है। यूरेशियन हजारो मीलों का सफ़र कर के भारत में आये थे, तो उन्होंने खुद को चमत्कारी बताया। उस समय के ज्ञानानुसार भारत के लोग उनकी बातों से प्रभावित भी जरुर हुए होंगे। क्योकि कोई नहीं जानता था इन महासागरों के पार क्या है। तो युरेशियनों ने इस बात का पूरा पूरा फायदा उठाया होगा, और यूरेशियन भारत के दिलों में यह दर बिठाने में सफल हो गए की वो आर्य है, देवता है, देवलोक से यहाँ आये है। आज के समय में जब छोटा सा बच्चा भी इसे लोगों पर हँसता हो, परन्तु उस समय यह बहुत बड़ी बात थी।
अब वही प्रश्न, तो फिर वेद पुराणों में वर्णित असुर, राक्षस और दानव कौन थे? अगर वेद पुराणों और कुछ अन्य किताबों का अध्ययन किया जाये। तो पता चलता है कि राक्षसों, असुरों और दानवों में अथाह बल होता था। राक्षसों पर किये गए हजारों शोधों से पता चलता है कि दानव, राक्षस, और असुर वास्तव में भारत के मूल निवासियों को कहा गया होगा। क्योकि दानव, राक्षस और दैत्य काले रंग के हुआ करते थे। जो की भारत के मूल निवासियों के चमड़ी का रंग होता था। भारत के लोग हजारों मीलों तक बिना थके भाग सकते थे, उनकी देखने की क्षमता भी अद्भुत थी, भारत के मूल निवासी 10 किलो मीटर तक बहुत आसानी से देख सकते थे। क्योकि उस समय भारत में कोई ज्यादा साधन नहीं थे तो यह बात सही भी लगती है। आवश्कता अविष्कार की जननी कहलाती है तो आवश्कतानुसार भारत के लोगों में यह गुण रहे होंगे। जिसेसे भारत के लोगों के अपने कार्य करने में आसानी होती थी। वेदों पुराणों के अनुसार भी देखा जाये तो यह बात सही लगती है। यूरेशियन उस समय सूरा अर्थात शराब का सेवन किया करते थे, वही सुरापान करने वाले सुर कहलाये होंगे। भारत के लोगों के तो उस समय शराब नाम की किसी भी चीज चीज का ज्ञान भी नहीं था। और ना ही भारत के लोग सुरापान करते थे। तो असुर कहलाये होंगे। जिससे भारत के मूल निवासी असुर कहलाये। और युरेशियनों ने भारत की लोगों को समयानुसार पहले असुर और बाद में राक्षस कहा होगा। भारत के यही लोग समयानुसार पहले असुर, फिर राक्षस, ऊँचे और शक्ति शाली होने के कारण दैत्य और दानव, और बाद में दलित और बहुजन कहलाये। भारत के मूल निवासियों का पतन कैसे हुआ? भारत के मूल निवासियों का आर्थिक और सामाजिक पतन कैसे हुआ इन बातों का उत्तर भी वेदों पुराणों में ही छिपा हुआ है। भागवत देवी पूरण, भागवत सुधा पूरण और शुक सागर पढ़ा जाये तो इन प्रश्नों के उत्तर मिल ही जाते है।
कहा तो यहाँ जाता है कि यूरेशियन लोग भारत पर आक्रमण कर ने की उदेश्य से आये थे। लेकिन यह बात तर्क संगत नहीं लगती क्योकि अगर यूरेशियन भारत पर आक्रमण करने आये होते तो यूरेशियन लोग भारत में ही क्यों बस गए? भारत पर हजारों विदेशी आक्रमणकारियों ने आक्रमण किये, देश को लुटा और वापिस अपने देश चले गए, तो यूरेशियन वापिस अपने देश क्यों नहीं गए? इस के दो कारण हो सकते है, पहला कारण; यूरेशिया में उस समय भयानक प्राकृतिक आपदा आई होगी जिसके डर से यूरेशियन लोग भारत में ही रहने पर विवश हो गए होंगे। क्योकि उस समय के लोगों क्या पता था की प्राकृतिक आपदा कुछ समय मात्र के लिए आती है और बाद में हालत ठीक हो जाते है। इस बात के प्रमाण वेदों और पुराणों में लिखित इस कहानी से भी मिल जाते है कि पृथ्वी पर प्रलय हुआ था। सारी दुनिया में बहुत बारिश हुई थी यह बारिश हजारों साल होती रही थी और मनु नाम का महर्षि सभी प्रकार के बीजों, सभी जातियों के एक एक जीवों को को लेकर एक नाव में बैठ गए थे। और उस नाव को मछली ने खिंचा था। और बहुत दिनों बाद मनु और उसके साथियों को धरती दिखाई दी थी। इस कहानी से प्रमाणित हो जाता है कि उस समय यूरेशिया में भीषण प्राकृतिक आपदा आई होगी, और यूरेशियन लोग यूरेशिया छोड़ने पर विवश हुए होंगे। और बाद में समुद्र में भटकते हुए, भारत में पहुँच गए होंगे। दूसरा कारण; यूरेशिया में कोई जाति रही होगी जो बहुत ही क्रूर और अत्याचारी थे। उन लोगों के सारे समूह को यूरेशिया के राजा द्वारा पकड़ कर नाव में बैठा कर यूरेशिया से निकल दिया होगा। क्योकि उस समय देश निकला देना सजाओं में प्रचलित था। दूसरा कारण ज्यादा तर्क संगत लगता है क्योकि यूरेशियन अपनी औरतों और बच्चों को साथ में नहीं लाये थे। ऐसा अकसर उस समय ही होता है जब किसी को देश निकला दिया जाता था। क्योकि देश निकले के समय सिर्फ दोषियों को ही देश से निकला जाता था, उनके परिवारों को नहीं। पुराणों में मत्स्य अवतार की कहानी को ध्यान से पढ़ा जाये तो यह बात सामने आती है कि जब मनु अपने साथियों के साथ नाव में बैठा तो उसने औरत जाति को बचाने के लिए अपने साथ किसी औरत को क्यों नहीं लिया? इन सभी बातों से पता चलता है कि यूरेशियन जाति के जो लोग भारत में आये वो क्रूर और अत्याचारी थे। लूटपाट करते थे। इसी कारण युरेशियनों की एक जाति को देश से निकला गया और उन लोगों को एक बहुत बड़ी नाव में बैठा कर खुले समुद्र में छोड़ दिया गया, और हजारों किलो मीटर का सफ़र तय करने के बाद यह अत्याचारी यूरेशियन जाति भारत में पहुंची थी। जिसे बाद में युरेशियनों ने अपने फायदे के लिए आगे पीछे कर के अपने वेदों पुराणों में स्थापित किया। और पृथ्वी प्रलय को अपने भारत आने के बहुत बाद का बताया।
यह बात तो वैसे भी सारी दुनिया जानती है कि यूरेशियन जो देवता या आर्य कहलाये, एक क्रूर जाति थी, जिसने भारत के मूल निवासियों पर मनमाने अत्याचार किये और छल और कपट से भारत पर अपना राज्य स्थापित किया। डॉ भीमा राव अम्बेडकर जी की पुस्तकों में भी इन सभी बातों का विवरण मिल जाता है। वेद पुराणों में भी आर्यों के किये हुए हजारों लाखों कुकृत्य लिखे गए है, जो यह साबित करने के लिए काफी है कि आर्य लोग क्रूर प्रकृति के लोग थे, किसी भी देश की सामाजिक और आर्थिक संस्कृति को मिटा देना ही जिनका एक मात्र लक्ष्य था। और आर्यों की इन्ही कुकृत्यों के चलते युरेशियनों ने आर्यों की सम्पूर्ण जाति को देश से बाहर निकल दिया। और युरेशियनों के इस कृत्य का दंड भारत के मूल निवासियों को झेलना पड़ा और आज भी भारत के मूल निवासी लोग आर्यों के अत्याचारों को झेल रहे है। 2000 से ज्यादा सालों से आर्य भारत के लोगों पर अत्याचार कर रहे है। और भारत के लोग इन आर्यों से आज़ाद नहीं हो पा रहे है। इस के लिए भारत के अनार्य ही मुख्य रूप से जिम्मेवार है। जो आर्यों की संस्कृति को अपना मान चुके है, और अपने ही मूल निवासी भाईयों से दगा करके देश पर आर्यों को शासन करने में सहायता कर रहे है। आज लाखों मूल निवासियों को इस सच्चाई का पता है, लेकिन कब कौन कहा दगा करेगा इसी डर से सारे मूल निवासी चुप चाप बैठे है। कोई भी खतरा मोल लेने को तैयार नहीं है। और यह बात तय है जब तक कोई भी मूल निवासी खतरा मोल नहीं लेगा, तब तक भारत आर्यों की गुलामी से आज़ाद नहीं हो सकता। हमारी टीम को भी पता है कि यह एक मुश्किल काम है, हमारे लिखने से कुछ नहीं होने वाला। लोग पढेंगे, और भूल जायेंगे, क्योंकि मूल निवासियों की रग राग में सिर्फ और सिर्फ युरेशियनों की कल्पनायों की कहानियां बैठी हुई है। यहाँ हमारे इसी लेख पर मूल निवासी ही ऊपर दिए प्रमाणों को भूल कर, हमारी टीम पर ही उंगली उठाएंगे। हजारों सवाल पूछे जायेंगे, कोई भी यह नहीं मानेगा कि यह एक मूल निवासी की रचना है और जो मूल निवासी इस लेख को लिख रहा है वो सिर्फ अपने समाज और सभी मूल निवासियों का भला चाहता है! मैं तो कुछ भी नहीं हूँ, एक अदना सा मूल निवासी हूँ। बहुत से मूल निवासी डॉ भीमा राव अम्बेडकर की लिखी लिखी हुई किताबों पर भी उंगली उठाने से नहीं हिचकते, सब भूल जाते है कि आज अगर मूल निवासी सम्पति रख सकते है, समाज में रह सकते है, अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकते है, औरतों को विशेषाधिकार प्राप्त है, समाज में सिर उठा कर चल सकते है, ये अधिकार कहा से आये? किसने दिलाये? मूल निवासियों को तो बस उंगली उठाना आता है, क्योकि पूरा का पूरा मूल निवासी समाज ब्राह्मणवादी मानसिकता में जकड़ा हुआ है और मूल निवासी इस मानसिकता से बाहर ही नहीं निकलना चाहता। अपने समाज के हितों की रक्षा करने वाले महामानव को झूठा कहते हुए भी मूल निवासियों को शर्म नहीं आती।